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Sain Devalaya Didwana

संगठन एवं सामाजिक कार्यकर्ता व्यक्तित्व से अपेक्षाएँ

  1. सार्वजनिक जीवन के क्षेत्र में समर्पित कार्यकर्ता का अपना स्वयं का कोई वैयत्तिक जीवन नहीं होता है| ऐसे व्यक्ति का व्यक्तित्व पारदर्शी होना चाहिये|
  2. सामाजिक सेवा के क्षेत्र में नेतृत्व देने वाले को स्वयं एवं समाज संगठन के प्रति निष्ठावान एवं ईमानदार होना चाहिये|
  3. कार्यकर्ताओं का मूल्यांकन उनकी समर्पित सेवाओं के आधार पर हो| मंच, माला, माईक, शाॅल, श्रीफल इत्यादि से झूठा सम्मान देकर आधारहीन फरेबी नेताओं से सामाजिक संगठनों को बोझिल नहीं बनावें|
  4. प्रत्येक संगठन ध्येयनिष्ठ बनें| अपना लक्ष्य निर्धारित कर उसी क्षेत्र में विशिष्ठता द्वारा पहचान विकसित करें| संगठन अपनी सेवा से पहचान बनायें|
  5. कार्यरत विभिन्न संगठनों की प्रबंध-व्यवस्था कार्यकारिणी एक निर्धारित कार्यकाल की हो| स्वयं भू-नेता एवं संगठन समाज के लिये घातक होते हैं| संगठन में पदों का दायित्व जिम्मेदार एवं समर्पित सेवाभावी व्यक्तियों को दिया जाये| चुनावी स्टंटों से फ़िलहाल परहेज किया जाये, जो कार्यकर्ता पहलभाव से दायित्व लेने के लिये तैयार हों तो नि:संकोच भाव से उनकी सेवायें ली जाये|
  6. समाज के उत्पाती एवं उदण्ड तत्वों के प्रति निगरानी रखी जाये तथा निर्भिकता से ऐसे असामाजिक तत्वों से दुरी रखी जाये|
  7. सदाचारी एवं शुध्द सात्विक जीवन पध्दति सामाजिक कार्यकर्ता के लिये प्रथम आवश्यक है| सेवार्थी को हमेशा झुककर चलना होता है, अत: अहम भाव का त्याग एवं विनम्रता का अभ्यास होना आवश्यक है|
  8. परस्पर आलोचनाओं से बचकर चलो, जो जिसने जितना कदम मिलाकर साथ दिया है, उसके प्रति आभार व्यक्त करो|
  9. आग्रहपूर्वक उदबोधन के लिये विषय, मंच एवं समय का अनुरोध हो तो ही विषय वस्तु पर सारगर्भित उदबोधन देना चाहिये| सम्बंधित विषय वस्तु पर अधिकारपूर्वक ज्ञान नहीं है तो उदबोधन न देना ही अच्छा है|
  10. सामाजिक कार्यकर्ता मितभाषी, धैर्यवान तथा आज्ञापलक होना चाहिये| वैयक्तिक तार्किकता/कुतार्किकता से संगठन के स्वरूप को नष्ट नहीं करें|
  11. कार्यकर्ता को शान्तचित से कार्य करना चाहिये, जो जिसमें जैसी योग्यता हो, वों वैसी ही उससे सेवा का लाभ लिया जाये|
  12. संगठन अपने संभावित सेवा प्रकल्पों पर सदैव चिन्तन करें, योजनाबध्द ढंग से  क्रियान्वयन करें, समुचित अभिलेख रखें तथा सतत मूल्यांकन हो|  
  13.  कार्यकर्ता का सोच सदैव सकारात्मक हो तथा रचनात्मक-सर्जनात्मक दृष्टीभाव का स्वभाव हो|
  14. कार्यकर्ता के लिए संगठन हित सर्वोपरि हो| किसी भी विषय को अपनी वैयक्तिक प्रतिष्ठा के साथ नहीं जोड़े|
  15. संगठन एवं कार्यकर्ताओं को भावी चुनौतियों के प्रति सदैव जागरूक रहकर तैयारी करनी चाहिये|
  16. कार्यकर्ता को स्पष्ट एवं सत्य बोलने का अभ्यास होना चाहिये|
  17. संगठनात्मक गतिविधियों की सामान्य जन तक जानकारी के लिये उपलब्ध सूचनातंत्र समुचित उपयोग करना चाहिये| 

सैनाचार्य श्री वचनामृत

सैनाचार्य श्री

“राष्ट्र धर्म एवं राष्ट्र देवता की हमारा आराध्य है”

सैनाचार्य श्री

“सद्कर्म केवल सदविचारों से ही संभव है”

सैनाचार्य श्री

“धर्म ही जीवन की बुनियाद है”

सैनाचार्य श्री

“आत्म चिंतन का स्वाध्याय मनुष्य में निखार लाता है”

सैनाचार्य श्री

“संकल्पवान व्यक्ति ही ईश्वरीय कार्य करने के लिए पात्र होता है”