भाग्यवादी जीवन के सहारे जीने का विचार एवं व्यवहार तो उन अकर्मण्य व्यक्तियों का जीवन दर्शन है, जिनकी पर्यन्त एवं प्रयास में आस्था तथा दृष्टि नहीं है। भाग्य के भरोसे का चिंतन एक तरह से आलस्यता तथा कर्महीन जीवन पद्धति का पर्याय है। पूर्ण संकल्प के साथ लक्ष्योपार्जन करने के लिए श्रम साधना का मार्ग अपनाओ। ध्यान रहे कि लक्ष्य पूर्णतया सत्यपरक तथा स्वहित के साथ-साथ लोकहित का भी हो, जनहित के विरुद्ध तथा केवल स्वार्थ पोषित लक्ष्य के लिए परिश्रम करना तो मनुष्य धर्म की परिभाषा में भी नहीं आता है| पुरुषार्थ हीन व्यक्ति ही भाग्यवादी स्वपनलोक में निवास करते हैं। जीवन की शिखरता के लिए विचरण करने वाले व्यक्ति का ठोस धरातल तो केवल और केवल परिश्रम ही है|

– परम श्रध्देय सैनाचार्य श्री का वचनामृत