अखिल भारतीय सैन भक्तिपीठ : एक परिचय

          युग पुरुष स्वामी रामानन्दाचार्यजी ने सहस्त्रों वर्ष पूर्व शंखनाद दिया था, उसने राष्ट्र के जनजीवन में नव स्फूर्ति का संचार भक्ति-भावना का वेग लाकर अभूतपूर्व सामाजिक-धार्मिक एकता की स्थापना की थी| जगद्गुरु श्री रामानन्दाचार्यजी महाराज के श्री चरणों में आकर असंख्य मानव ने धन्यता को प्राप्त किया| प्रमाणिक विद्वानों का मानना है कि श्री आचार्यप्रवर के लगभग 25000 विरत्त शिष्य थे| स्वामीजी की शरण में आकर जिन्होंने आदित्य के समान आध्यात्मिक जीवन को प्राप्त किया, उनमें मुख्य शिष्यों की संख्या निर्धारित रूप से द्वादश बताई जाती है| इन शिष्यों ने गुरु से प्राप्त आध्यात्मिक ऊर्जा के माध्यम से संपूर्ण संसार को सगुण एवं निर्गुण की श्री रामभक्ति धारा से जोड़ा| अपने द्वादश प्रधान शिशुओं में अनन्तानन्द, सुखानन्द, सुरसुरानन्द, कबीर, नरहरीयानन्द, योगानन्द, पीपा, सेना, धन्ना, रैदास, पद्मावती तथा सुरसरि के लिये स्वामी रामानन्दाचार्यजी प्रेरणा स्रोत बने| इनका मूल संदेश यह रहा कि – 

जाति पांति पूछे ना कोई हरि को भजे सो हरि का होई

 

          ऐसी सर्वकल्याणी-सर्वहिकारिणी श्रीपीठ एवं श्री रामानन्दाचार्यजी जैसे पीठाधीश्वर के सानिध्य एवं आशीर्वाद से पोषित एवं दीक्षित शिष्य अपने आध्यकुल गुरू श्री सैनजी महाराज यथार्थ में सैन समाज के लिए विशेषता पूजनीय एवं आराध्य इसलिए है कि सैनजी महाराज हमारे समाज के रत्न थे तथा उन पर स्वयं भगवान की असीम अनुकम्पा से अपना सैन समाज प्रतिष्ठित हुआ| स्वयं भगवान नारायण अपने भक्तों पर कृपा करने के लिए नर रूप धारण किया हो, ऐसा उदाहरण संत जगत में श्री सैनजी महाराज का ही मिलता है, लेकिन उपर्युक्त घटनावृत को लगभग 700 वर्ष व्यतीत हो गए| इस दौर में अपने आध्यकुल गुरू सैनजी महाराज की धर्म पताका को लहराने फहराने के लिए कोई भी धार्मिक आध्यात्मिक साधना केंद्र स्थापित नहीं हो पाया| इस देश के विस्तृत भू-भाग में फैला अपना सैन समाज कुछ विषमताओं के कारण अपनी गौरवपूर्ण एवं आध्यात्मिक परंपरा का निर्वाह नहीं कर पाया| रामानन्दाचार्यजी के द्वादश शिष्यों में से अन्य अनेकों की धर्मपीठ स्थापन हो चुकी, लेकिन हमारे अपने सैन समाज में सदियों तक इस ओर चेतना जागृत नहीं हो पाई|

          बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में विगत कुछ वर्षों के चिंतन एवं सामाजिक जागरूकता के फलस्वरुप इस विचार को सर्व समर्थन संपूर्ण सैन समाज से मिला कि आध्यकुल गुरू श्री सैनजी महाराज के धर्म पताका के लिए राष्ट्रीय स्तर पर धर्मपीठ स्थापित हो तथा इसके पीठाधीश्वर पद पर ज्ञान-गरिमा, त्याग-तप, साधना-उपासना की प्रतिभा को आचार्य के रूप में पदासीन किया जाए| ईश्वरीय कृपा से सैन समाज का वर्षों से संजोया हुआ स्वप्न भी इस रूप में साकार हो गया कि महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ, 1992 के शुभ अवसर पर सैन जगत के संत शिरोमणि श्री सैनजी महाराज की अखिल भारतीय स्तर धर्मपीठ की स्थापना की गई| इस अखिल भारतीय सैन भक्तिपीठ के प्रथम सैनाचार्य के रूप में निश्चित, निर्बल, बाल-ब्रह्मचारी, भक्ति-भाव से ओतप्रोत एवं धर्म साधना को समर्पित राजस्थान में स्थित जोधपुर के तेजस्वी संत श्री श्री 1008 स्वामी अचलानन्दजी महाराज को धार्मिक मंत्रोचार के साथ दिनांक 15 अप्रैल, 1992 को प्रातः 9:00 बजे सैन भक्तिपीठ के पीठाधीश्वर पद पर किया गया| सैनाचार्यजी ने भक्तिपीठ का मुख्यालय तीर्थराज पुष्कर (राजस्थान) में स्थापित किया| भक्तिपीठ की देखरेख के लिये एक ट्रस्ट का गठन किया है| इसकी पंजीकरण प्रक्रिया 29 अप्रैल, 1995 को संपन्न हुई तथा भक्तिपीठ क पंजीकृत कार्यालय बाबा रामदेव मंदिर, राई का बाग, जोधपुर (राजस्थान) में स्थित है| सैनाचार्यजी का मुख्यालय एवं आवास भी यहीं पर है|