सन्त सैनजी महाराज की सारगर्भित शिक्षायें
- कीर्तन, प्रेमसुख का सामराज्य है|
- परहित सेवा ही ईश भक्ति है|
- आशुरी शक्ति मनुष्य का नाश करती है|
- केवल हरिनाम व्यसन ही मनुष्य के लिए कल्याणकारक है|
- दुर्व्यसनों में लिप्त मनुष्य अन्त में दरिद्रता को प्राप्त होता है|
- सन्तगण संसार के मार्गदर्शक होते है|
- शुद्ध चित्त से अभिमान त्यागकर ईश्वर कि शरण में जाना चाहिये|
- बिना चित्त शुध्दिके तीर्थ एवं व्रत आदि निरर्थक हैं|
- भाव सिन्धु पर करने का वास्तविक साधन सत्संग एवं भगवत नाम स्मरण हैं|
- सांसारिक सुख भ्रामक है परमात्मा की आराधना ही सच्चा सुख है|
- जीवन का बाह्य रूप अति सुन्दर प्रतीत होरा है, लेकिन भीतर से कड़वा होता है|
- भौतिक सुविधाओं में मनुष्य को हार्दिक आनन्द होता है, लेकिन कालान्तर में ये कष्टप्रद बन जाती है|
- विषयों मेंआशक्ति पुरुषार्थ खो बैठती है|
- जिस पुरुष में वीर श्री ना हो, उसका जीवन व्यर्थ है|
- उत्तम सौन्दर्यवृति स्त्री का अविवेकी आचरण अपने दोनों कुलों के नाश का कारण बनता है|
- ज्ञान कि अपेक्षा परमात्मा में आस्था एवं श्रध्दा श्रेष्ठ है|
- भगवत प्राप्ति का मात्र उपाय समर्पित भक्ति है|
- भगवन ने जीवन धर्मं के जो उपाय बताये हैं, वही भागवत धर्मं है|
- भगवत भक्तों के आचरण का अनुसरण करना चाहिये|
- मुक्ति से भक्ति श्रेष्ठ है|
- आर्याव्रत परमार्थिक विचारों की घोषित भूमि है|
- नाम कीर्तन जीवन के उध्दार का सबल साधन है|
- संसार का लौकिक सुख मूलतः दुःख कि सामग्री है|
- गृहस्थ को सुख दुःख से निर्लिप्त होकर कमल सिध्द्स्थ होना चाहिये|
- सन्त चरण सुख हरि हर को भी अप्राप्य है|
- यदि परमात्मा भूल गये हों तो यमपाश से मुक्ति का कोई मार्ग नहीं है|
- अपने प्रारब्ध में जो कर्म आये हैं, उन्हें धर्मपूर्वक करना चाहिये|
- घर आये साधु-सन्त नहीं, दिन दिवाली दशहरा जानें|
- समस्त कर्म परमेश्वर के लिये ही करना चाहिये|