आराध्य कुल देवी : नारायणी माता
राजस्थान के अलवर जिले में एक जगह ऐसी भी है, जहां से रहस्यमयी ढंग से सदियों से पानी निकल रहा है। यह पानी बहकर उतनी ही दूर तक जा रहा है, जहां तक एक ग्वाला दौड़कर जा सका था। इसके पीछे एक कहानी प्रचलित है।
यह घटना भले ही 1100 साल पुरानी है, लेकिन आज भी जीवंत है, क्योंकि पानी की धार लगातार उतनी ही बनी हुई है। न धार की दिशा बदली है न जगह। न वह स्थान बदला है, जहां तक पानी बहता हुआ जाता है। यही नहीं, यह भी है कि जहां तक पानी जाता है, उसके बाद कहां चला जाता है, आज तक कोई जान नहीं सका।
यह सच्चाई है सरिस्का के वन क्षेत्र से घिरे धार्मिक क्षेत्र नारायणी धाम की। तिलवाड़ गांव के नजदीक इस नारायणी धाम को सैन समाज का पवित्र धार्मिक स्थल माना जाता है, वे इसे कुलदेवी मानते हैं, लेकिन यहां सभी वर्ग-समाज के लोग दर्शन के लिए आते हैं।
क्या है लोक मान्यता : सरिस्का के वन क्षेत्र के पास जंगलों से घिरे वरवा की डूंगरी की तलहटी में स्थित नारायणी माता का मंदिर मेवात के प्रमुख लोक तीर्थ स्थलों में गिना जाता है। लोक मान्यता के अनुसार 1016 में सैन समाज की महिला कर्मवती शादी के बाद विदाई होने पर पति के साथ ससुराल जा रही थी। रास्ते में एक बड़ के पेड़ के नीचे विश्राम के दौरान पति को सांप ने काट लिया। उसकी मृत्यु हो गई। ससुराल पहुंचने से पहले ही हुई इस घटना पर कर्मवती ने सोचा कि जब पति ही नहीं है तो ससुराल कैसा। ऐसे में उसने फैसला किया कि वह पति की चिता के साथ ही भस्म हो जाएगी।
यह कोई चमत्कार से कम नहीं : कर्मवती वहां चिता के लिए लकड़ियों का इंतजाम करने में जुट गई। उन्होंने लकड़ी काटने वाले ग्वालों को देखा तो उनसे चिता के लिए लकड़ी देने की गुजारिश की। ग्वालों ने उनसे पूछा कि लकड़ी का आप क्या करोगी? तो उन्होंने कहा कि मुझे पति के साथ चिता में भस्म होना है। ग्वालाें ने कहा कि आपके ऐसा करने से इस क्षेत्र को आप वरदान दे जाइए। यहां पानी की किल्लत है। हमारे जानवरों को कई बार प्यासा रहना पड़ता है। । कर्मवती ने उन्हें वरदान दिया और कहा कि मेरी चिता की जलती लकड़ी को लेकर आगे बढ़ते रहना, लेकिन पीछे मत देखना। जैसे ही तुम पीछे देखोगे पानी वहीं रुक जाएगा लेकिन ग्वालों ने उनकी बात नहीं मानी और कुछ दूर जाने के बाद सती के हाल जानने के लिए जैसे ही उन्होंने पीछे देखा, पानी वहीं रुक गया। कहा जाता है कि मंदिर के पास आज भी वह जगह है जिसमें रहस्यमयी ढंग से पानी निकलता रहता है।
यह जगह मंदिर से थोड़ी ही दूर है। यह पानी लगभग एक किलोमीटर दूर जाकर रुकता है। तब से इस जगह को श्रद्धा स्थल के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर 11वीं सदी का और प्रतिहार शैली में बना हुआ है।