प्रातः स्मरणीय श्रद्धेय सैनाचार्य श्री श्री 1008 स्वामी अचलानन्द गिरी जी महाराज : व्यक्तित्व-कृतित्व
सनातन धर्म की यह आस्था तथा विश्वसनीय शास्त्र सम्मत चिंतन रहा है कि देवभूमि भारत में देवता भी जन्म लेने को आतुर रहते हैं| संत-महात्माओं की त्याग, तपस्या तथा साधना ने इस वसुंधरा को अपनी निराली विशिष्टता दे रखी है| दुनिया में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां भारत माता के रूप में हम भारतीय पुत्र पुत्री व्रत भाव से मात्र वंदना करते हैं| अपनी मातृभूमि की मान प्रतिष्ठा के लिए हर भारतीय अपना सब कुछ न्योछावर करने में जीवन की सार्थकता मानता है| ऐसी पावन धरा पर 30 अप्रैल 1955 को राजस्थान राज्य के जिला जोधपुर में स्थित ओसियां तहसील के ग्राम खिन्दाकौर में संकुल के धर्म परायण दंपति श्री राजूराम जी श्रीमती कुसुम देवी के घर आंगन में श्रद्धा सैनाचार्य श्री श्री 1008 श्री स्वामी अचलानन्दगिरीजी महाराज का शिशु स्वरूप बालक अचल के रूप में अवतरण हुआ| जन्म समय के नक्षत्रों के अनुरूप नामांकन संस्कार अचल ही हुआ| संभवतः मानव मात्र के कल्याण हेतु ईश्वर ने बालक अचल के अवतरण को सार्थक करने के लिए पहले से ही मार्ग प्रशस्त कर दिया था| बालक अचल से सैनाचार्य श्री श्री 1008 श्री स्वामी अचलानन्दगिरी जी महाराज की जीवन यात्रा पूर्व जन्म के संस्कारों के साथ-साथ निश्चय ही सृष्टि कर्ता की आवश्यकता भी रही होगी|
यद्यपि संत महात्माओं का दीक्षा, संस्कार के उपरांत कोई भी परिजन-स्वजन, जाति, पंथ, समाज वर्ग, तथा समुदाय नहीं होता है, फिर भी सैनाचार्यजी का सांसारिक अवतरण सैन कुल में होना तथा सैन समाज के आध्यकुल गुरु संत शिरोमणि सैनजी महाराज की पीठ पर पीठाधीश्वर पद को सुशोभित करना न केवल हिन्दुस्तान अपितु दुनिया के कोने-कोने में आवासीय-प्रवासित सैन समाज के लिए यह आस्था एवं गौरव का विषय है कि सैनाचार्यजी सम्पूर्ण सैन समाज के अपने धर्मगुरु हैं| यथार्थ एवं व्यवहार में सैनाचार्यजी सम्पूर्ण मानव जाति को अपने तपोबल से अर्जित सिद्धि का आशीर्वाद प्रसाद स्वरूप प्रदान कर रहे हैं|
बालक अचल के व्यक्तित्व में ज्ञान, भक्ति, साधना जैसी आध्यात्मिकता का आविर्भाव अति अल्पायु में ही परिलक्षित होने लगा| एकान्त प्रियता, विलक्षणता, चिन्तन, ध्यान तथा ईश्वरीय दृष्टि जैसे गुणों ने बालक अचल को हम उम्र साथियों से कुछ अलग सा कर दिया|
ईश्वरीय संयोग एवं प्रेरणा से बालक अचल मात्र अपनी 17 वर्ष की उम्र में जूना अखाड़ा काशी के तपोनिष्ठ संत श्री श्री 1008 श्री रामानन्दजी महाराज एवं जोशीमठ के त्यागमूर्ति दसनाम सन्यासी आश्रम के आचार्य के संपर्क में आये| ऐसा लगा जैसे उक्त दोनों संत अपने श्रद्धालु शिष्य के रूप में बालक अचला की ही प्रतीक्षा कर रहे थे| भारतीय संस्कृति में ऐसी अटल आस्था है कि गुरु शिष्य परम्परा में जहां शिष्य अपने लिए योग्य गुरु की तलाश करता है, वैसे ही गुरु भी अपने लिए पात्रतायुक्त शिष्य की कड़ी परख के साथ तलाश करता है| इसी श्रेष्ठ परम्परा में बालक अचल ने इन्हीं गुरुजनों की चरण वंदना करते हुए शिष्यत्व की दीक्षा अर्जित की| सतत साधना, तपस्या तथा अपने नाम के अनुरूप दृढ़ संकल्प के साथ बालक अचल के व्यक्तित्व का स्वरूप सन्यस्थ व्यक्तित्व में परिवर्तित हो गया| सांसारिक अचल से सन्यासी अचलानन्दगिरी का रूप धारित हुआ तथा अब घर-परिवार इनके लिए अतीत एवं इतिहास की वस्तु बन गया| सन्यासी अचलानन्दगिरी ने पहले ही संकल्प किया था कि वे कर्मनिवृति का सन्यास न लेकर कर्मस्वीकृति का सन्यास धारण करेंगे| उनका सन्यास जीवन केवल लोग कल्याण को समर्पित रहेगा| मोक्ष-मुक्ति जैसी अवधारणा से स्वयं को दूर रखकर मानव मात्र के प्रति सेवा, सहायता, सहयोग, संस्कार तथा श्रेष्ठता के मार्ग को ही अपने जीवन का ध्येय बनाया| आज इसी मार्ग का अनुसरण करते हुए आप श्री देशभर में यात्रा-प्रवास करते हैं तथा लाखों-लाख श्रद्धालु-शिष्यों ने आपके आशीर्वाद से स्वयं को कृतार्थ किया है|
सन्यासी अचलानन्दगिरीजी अपने सन्यास दीक्षा के बाद देशाटन पर निकल पड़े| अनेक तपोस्थलों एवं तीर्थों की धर्मयात्रा करते हुए आप जोधपुर पधारे| ईश कृपा से आप पर लोक देवता बाबा रामदेवजी महाराज एवं नेतलदे रानी युगल जोड़ी की कृपा हुई तथा आराध्य देव की भक्ति-उपासना में आपने स्वयं को तल्लीन कर लिया| धूप-दीप, हवन-यज्ञ, ध्यान-तप, भजन-कीर्तन तथा पूजा-अर्चना में आप पूर्ण समर्पित एवं साधनाम हो गये| सतत तपस्या फलीभूत हुई तथा आपके ईष्ट-आराध्य बाबा रामदेव जी महाराज नेतलदे रानी युगल जोड़ी का आपको साक्षात दर्शन हुआ तथा पूर्ण मनोयोग के साथ जोधपुर स्थित रायकाबाग पैलेस के निकट बाबा रामदेव नेतलदे रानी युगल जोड़ी का आपने भव्य मंदिर का निर्माण करवाया| यह देवालय पूरे भारत में अपनी एक मिसाल है| इस दीवालय की कीर्ति एवं प्रतिष्ठा जन-जन में व्याप्त है| दूर-दूर से दर्शनार्थी अपनी मनोकामनाएं लेकर वर्ष पर्यंत आते रहते हैं तथा मंदिर परिसर में हर समय धार्मिक अनुष्ठान आयोजित होते रहते हैं| राजस्थान के अतिरिक्त गुजरात, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तरांचल, उड़ीसा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तराखंड, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश आदि अनेक प्रदेशों से श्रद्धालुओं का यहां तांता लगा रहता है| यह देवालय स्वयं में एक सिद्धपीठ है| स्वामी अचलानन्दगिरीजी महाराज यथार्थ में एक सिद्ध सन्यासी है| इनके द्वारा प्रदत वचनामृत एवं चरणामृत ग्रहण करने मात्र से श्रद्धालु की मनोकामना पूर्ण हो जाती है| इस तपोस्थली को एक तरह से ईश्वरीय वरदान हासिल है| लोक कल्याण के लिए मुक्त हस्त से दान करना स्वामी जी का सहज स्वभाव है तथा वर्ष पर्यंत सन्यासीगण एवं श्रद्धालुओं के लिए अन्नक्षेत्र संचालित रहता है|
आध्यकुल गुरु संत शिरोमणि सैनजी महाराज की पीठ पर पीठाधीश्वर के रूप में सेनाचार्य का गुरुत्तर दायित्व एक अनायास घटनावृत एवं सैन समाज का सौभाग्य ही कहा जा सकता है| अखिल भारतीय सैन भक्तिपीठ पर प्रथम आचार्य के रूप में मध्य प्रदेश राज्य में स्थित महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन में सिंहस्थ महाकुम्भ पर्व 1992 के पावन अवसर पर 15 अप्रैल, 1992 को प्रातः 9:00 श्रीमठ काशी के अनंत विभूषित जगद्गुरु रामानन्दाचार्य श्री श्री 1008 श्री रामनरेशाचार्य जी के कर कमलों से विधि-विधान एवं मंत्रोच्चार के साथ अभिषेक हुआ| अपने सम्पूर्ण सैन समाज के लिए गौरवमयी ऐतिहासिक ये क्षण सदैव स्वर्ण अंकित अक्षरों में सुसज्जित रहेंगे| उल्लेखनीय है कि अपने आध्यकुल गुरु सैनजी महाराज श्रीमठ काशी के आध्यगुरू श्री रामानन्दाचार्यजी के द्वादश शिष्यों में प्रमुख शिष्य थे|
गुरु पीठ की स्थापना तथा प्रथम आचार्य के रूप में सैनाचार्यजी का प्रत्यक्ष आशीर्वाद कई सदियों की अथक प्रतीक्षा के बाद अपने सैन समाज पर कृपा हुई है| यह सब जागरूक कार्यकर्ताओं एवं इस कृपा से ही प्रसाद स्वरूप प्राप्त हुआ है| इस अपने आराध्य पीठाधीश्वर एवं पीठ का वर्तमान संबोधन श्री श्री 1008 सैनाचार्य श्री स्वामी अचलानन्दगिरीजी महाराज, अखिल भारतीय भक्तिपीठ है| अपने इस गुरुपीठ का मुख्यालय तीर्थराज पुष्कर में है तथा आचार्य श्री का स्थाई आवास स्थल बाबा रामदेव मंदिर, राईका बाग जोधपुर है| गुरुपीठ की प्रबंधकीय व्यवस्था के लिए पृथक से ट्रस्ट पंजीकृत है तथा कार्यकारिणी गठित है|
वर्ष पर्यंत तथा विशेषकर महाकुम्भपर्व के अवसरों पर विशाल संत समागम सैनाचार्यजी द्वारा किया जाना संत जगत के प्रति श्रद्धामय सम्मान है| विश्व शांति, सर्वे भवन्तु सुखिनः एवं वसुधैव कुटुंबकम जैसे मानवतावादी विचारों एवं सिद्धांतों के साथ उच्च जीवन आदर्शों पर आधारित भारतीय संस्कृति में सैनाचार्य श्री की गहरी आस्था है|
देश सेवा में नारी की दुर्दशा की स्थितियों पर चिंता प्रकट करते हुए आचार्य श्री सदैव अपने प्रवचनों में यह संदेश देते रहते हैं कि यदि सबल, सरस एवं शिष्ट समाज का निर्माण करना है तो नारी का सम्मान करो, इसकी प्रतिष्ठा में श्रीवृद्धि करो तथा नारी स्वयं जागृत रहकर अपने विकास का मार्ग प्रशस्त करें| बाजारी विज्ञापनों में अशिष्ट, असभ्य एवं अश्लील दृश्यों ने नारी शालीनता की सभी सीमाओं को परास्त कर दिया है| बहुत ही सजगता के साथ समय रहते नारी की प्रतिष्ठा को बचाना एवं बनाए रखना देश-समाज का वर्तमान दौर में प्राथमिक दायित्व है|
सैनाचार्य श्री की ध्येयनिष्ठा इस पहलू में है कि अपना समाज पवित्र, आदर्श कर्मनिष्ठा, आस्था, श्रद्धा एवं समर्पण द्वारा पारस्परिक प्रेम, शांति और अपने संत शिरोमणि आध्यकुल गुरु सैनजी महाराज की स्थापित पीठ के माध्यम से सर्व समाज के साथ समरसता रखते हुए सनातन शक्ति को जागृत कर अपनी राष्ट्र निष्ठा का परिचय दें|
आचार्य श्री सदैव हम सब का ध्यान देश-समाज में व्याप्त प्रतिकूलताओं की तरफ आकृष्ट करते रहते हैं| आपा-धापी का जीवन, वैयत्तिक एवं सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार, अनास्था, राष्ट्रविरोधी कृत्य, गैर जिम्मेदाराना शासकीय सत्ता, द्वेषयुक्त सांप्रदायिकता, गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, अलगाव तथा चारित्रिक संकट ने हम सब को बेहाल कर रखा है| ऐसी विकट परिस्थिति में सैनाचार्य श्री श्री 1008 स्वामी श्री अचलानन्दगिरीजी महाराज, पीठाधीश्वर अखिल भारतीय सैन भक्तिपीठ हम सब पर एक आध्यात्मिक प्रखर शक्ति के रूप में आशीर्वाद दे रहे हैं, ताकि हम अपनी ऐतिहासिक, संस्कारमय तथा प्रेरणास्पद विरासत की रक्षा कर सकें|
सैनाचार्यजी का यह अटल विश्वास है कि जीवन में श्रेष्ठता का उदय किसी तंत्र-मंत्र अथवा अनायास घटना से होने वाला नहीं है, अपितु सतत उपासना, परिश्रम, साधना, जागरूकता, सुस्पष्ट दृष्टि, संकल्प, सत्यता, निष्ठा तथा ध्येयनिष्ठा से ही वांछित एवं इच्छित श्रेष्ठता प्रकट होने वाली है| इस तरह श्रेष्ठजन ही सर्वबल संपन्न समाज का निर्माण करते हैं| लोक मानस के मनोरथ को पूर्ण करने के महायज्ञ में आप अपनी भी आहुति देने का संकल्प लें, इसी में जीवन की सार्थकता है|
सामाजिक क्रांति के रूप में नशामुक्ति अभियान श्रद्धेय सैनाचार्यजी का एक प्रमुख आह्वान है| अपने समस्त छोटे बड़े सभी कार्यकर्ताओं एवं समारोहों में पूरा सभागार, पांडाल इस संदेश के साथ मंच सहित बैनरों से पटा रहता है कि “सैनाचार्यजी का यह संदेश – नशामुक्त हो सारा देश|” सम्पूर्ण देश में अपनी यात्रा प्रवास के दौरान “नशा छोड़ो-जीवन मोड़ो”, का विशेष आग्रह रहता है| यह अथक प्रयास इस रूप में फलीभूत हो रहा है कि हजारों-हजार व्यक्तियों ने स्वयं को नशे की प्रवृत्ति से मुक्त कर लिया है| महाराज श्री अपने अतीत की नशावृत्ति को निर्भीकता से स्वीकार करते हैं तथा कहते हैं कि मैंने जीवन-मरण का प्रश्न बनाकर स्वयं को दशकों पूर्व नशे की आदत से मुक्त कर स्वानुभव से समाज को जागृत करने का संकल्प लिया था|
आध्यात्मिक ज्ञान-भक्ति के लिए श्रद्धालुओं को बताते हैं कि पहले पात्रता ग्रहण करो| स्वयं को तन-मन से पवित्र करो, संस्कारयुक्त व्यक्तित्व बनाओ तथा समर्पण के साथ श्रद्धामय बनो| शंका, भ्रम तथा कुतर्क करने वालों को धार्मिक संस्थाएं एवं ज्ञान भक्ति में कोई स्थान नहीं है| अटल विश्वास, धैर्य, सतत साधना एवं गहरी आस्था से ही व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ ही बना सकता है|
पर्यावरण के प्रति सजगता सैनाचार्यजी का अपना विशिष्ट चिंतन रहा है| हरा भरा हो अपना देश एवं स्वच्छता के प्रति चेतन्यता का विशेष आग्रह रहता है| आचार्य श्री हमेशा यह कहते हैं कि मात्र कर्मकांडी जीवन शैली से ही देश-समाज का भला होने वाला नहीं है| अपना धर्म, अपनी संस्कृति-सभ्यता तभी सुरक्षित एवं संरक्षित है, जब अपने दिल दिमाग में राष्ट्र को सर्वोपरि माने तथा भारत माता की वंदना करें|
समाज सेवा के प्रति आचार्य श्री का दृष्टिभाव यह है कि व्यक्ति यह कार्य स्वयं के परिवार-समाज से शुरू करें| अपनी स्वयं की खूबियों एवं कमियों की पहचान करते हुए परिवार-समाज में व्याप्त खामियों, अंधविश्वासों और कुरीतियों, कष्टों एवं आवश्यकताओं पर निरंतर चिंतन करते हुए उन्हें दूर करने का एक सामूहिक अभियान अपने परिवार-समाज के सहयोग से करें| अगर सच्चे मन से ऐसा करें तो निश्चित ही सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकेंगे|
राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय धर्म सम्मेलनों में सैनाचार्यजी की सहभागिता हम सबका गौरव बढ़ाने वाला रहता है| देश के सभी शंकराचार्य मठों, प्रमुख आश्रमों, संत-महात्माओं के मध्य सैनाचार्य श्री का प्रभावी आध्यात्मिक उपस्थिति एवं पहचान स्थापित है| ऐसे निर्भय, बाल ब्रह्मचारी, तपोनिष्ठ सिध्यहस्त एवं प्रखर सन्यासी का सैनाचार्यजी के रूप में हम सब पर आशीर्वाद निश्चित ही परमात्मा की विशेष कृपा का ही फल है| हम ऐसे महान मनीषी को अत्यंत ही विनम्र श्रद्धा के साथ शत-शत नमन करते हैं|