मनुष्य को बुद्धि एक तरह से परमात्मका का अनुपम वरदान है| जन्म से लेकर मृत्यु तक बुद्धि तंत्र अनवरत क्रियाशील रहता है| मनुष्य की बुद्धि अपने समस्त चिंतन के आधार पर अपने जीवन कर्म को निष्पादित करती है| इस संसार में वही व्यक्तित्व अपनी अमरता का संदेश दे सकने में सफल होता है, जिसने अपने सुविचारित सद्कर्मों से अपने समस्त जीवन को प्राणी मात्र के कल्याण कामना में समर्पित किया है| मनुष्य को कुदरत ने बुनियादी तौर पर श्रेष्ठ कार्यों के लिए ही बनाया है| जो पहले स्वयं के लिए अच्छा है, वो सभी के लिए अच्छा सा बने, ऐसा सतत् चिन्तन के साथ कार्य तथा व्यवहार अपनाने वाले व्यक्ति की बुद्धि सदैव ही सद्-विचारों को प्रवाहित करने की अभ्यस्त हो जाती है| किसी भी तरह का कार्य मनुष्य की बुद्धि से परे नहीं होता है| अतः समस्त प्रकार से श्रेष्ठ विचारों को धारण कर अपने को दैवीय व्यक्तित्व बनाने के सद्-प्रयास अनवरत करते रहना चाहिए| सर्वविदित विषय है कि कर्म क्षेत्र में स्वयं को केंद्र न बनाकर केवल अन्यो की कर्म पद्धति पर तांक-झांक करना एक तरह से कुत्सित विचारशैली है| परमात्मा से सदैव वंदना करते रहना चाहिए कि “हे परमात्मा मुझे केवल सद्विचार दो, ताकि मेरा संपूर्ण जीवन सद् कार्यों के लिए ही समर्पित रहे|” व्यक्ति को सात्विक आहार-विहार, सद्साहित्य पठन, श्रेष्ठ जनों की संगत, ज्ञानी जनों से प्रेरणा तथा सर्व कल्याण भाव हमेशा ही व्यक्ति को सदविचारों से पोषित कर सद्कार्यों के लिए प्रेरित करता है|

– परम श्रध्देय सैनाचार्य श्री का वचनामृत