इस सृष्टि पर व्यक्ति का जन्म केवल परमात्मा द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलते हुए ईशवरीय कार्य करने के लिए ही होता है| मतिभ्रम एवं स्वार्थ के वशीभूत होकर प्रदत ईशवरीय सेवा से ऐसे व्यक्ति विमुख हो जाते हैं, जिन पर परमात्मा का कृपा भाव नहीं होता है| जीवन में श्रेष्ठ मार्ग पर अडिग रहने के लिए मात्र रास्ता यह रह जाता है कि संकल्प के साथ अपने कर्तव्य को परिपूर्ण करना ही उच्च प्राथमिकता होना चाहिये| पृथ्वी पर हर व्यक्ति अपनी पैदाईश के साथ परमात्मा का कार्य करने की योग्यता रखता हो, ऐसा आवश्यक एवं संभव नहीं है| संकल्पावन व्यक्ति ही ईशवरीय कार्य करने के लिए पात्र होता है| पात्रता किसी भी व्यक्ति को सहज नहीं मिल जाती है, इसे प्राप्त करने के लिए निश्चछल एवं सर्वकल्याण की भावना रखते हुए सतत अभ्यास की आवश्यकता होती है| श्रेष्ठ कार्य करने का प्रयास नहीं अपितु अभ्यास यदि बन जाता है तो ऐसा व्यक्ति श्रेष्ठता के अतिरिक्त अन्य विचार मन-मस्तिष्क में लाता ही नहीं है| सब तरह से परमात्मा को समर्पित व्यक्तित्व सदैव प्रसनं भाव से रहने वाला होता है| कोई भी परिस्थिति उसे हतास अथवा निराश नहीं कर कर सकती है| ऐसे व्यक्ति के हित हित अहित की सब तरह से चिंता एवं चिंतन करने वाला परमात्मा ही है| सतत प्रयास एवं सोच ऐसा रखना चाहिए कि ‘तेरा तुझको अर्पण, क्या लोग मेरा’ इस तरह का फक्कडपन अंदाज रखने वाला व्यक्ति कभी भी अपने मार्ग पर विचलित नहीं होता है तथा सदैव ईश्वरीय कार्य के प्रति समर्पित रहता है|

– परम श्रध्देय सैनाचार्य श्री का वचनामृत