सैन चालीसा
दोहा
बंदउ गुरु गोविंद पद जन मानस के धाम|
जे ही सिमरन पूर्ण भहे कोटि भक्ति के काम||
राम कृपा सत संग बिपत राम भक्ति के मूल|
मिलही ना कोटिक जतन सौ संत होय अनुकूल||
ज्ञान भानु उर जलधि सम मनि मानिक के खानी|
संत प्रताप महिमा विपुल कह लग करौं बखानि||
दीन हीन अति मन्द मति, मरहू कृपा निज जान|
वरर्णो चहति कछु विमल यस महिमा संत सुजान||
चौपाई
जय जय सेन संत बड़भागी| विमल राम भक्ति अनुरागी ||1||
भक्ति अलौकिक जग विस्तारी| रामभक्ति भये सबही बिसारी ||2||
राम नाम जस बरननन लागे| संसय समन मोहन भ्रम भागे ||3||
सगुन अगुन भेद बिलगाई| प्रकट सबही हरि रूप दिखाई ||4||
कोटिक साधन करही अनेका| तउ न राम रूप जिन देखा ||5||
बिरले कोउ इक संत सयाने| लखैही राम रूप उर थाने ||6||
प्रेम विवस हरि लेही अवतार| भक्त हेतु सब काज संवारा ||7||
बघेल राज्य रींवा रजधानी| सैन जन्म भूमि सब जानी ||8||
पिता मुकुंद माँ जीवनी देवी| निरत धरम नित साधू सेवी ||9||
क्षीर कर्म निज नृप गृह जाई| बहु विधि सैन करहीं सेवकाई ||10||
हरि कीरतन कथा प्रसंगा| करहीं मुदित मन साधु संगा ||11||
भाव भक्ति प्रेम रस जानो| तिन कहूँ का कही नाथ बखानो ||12||
धन्य-धन्य रामानन्द स्वामी| सब प्रकार गुरु अन्तर जामी ||13||
राम भक्ति ताही बरदानी| किन्हीं कृपा नाथ निज जानी ||14||
राम नाम मन सुमिरन लागा| भई अखण्ड वृति भ्रम भागा ||15||
रामाकार भै अखिल ब्रह्मंडा| भक्ति भवानी भई प्रचण्डा ||16||
जोगी जति तापस ब्रह्मचारी| चकित सबही साधना डारी ||17||
देव महादेव ब्रह्म ज्ञानी| भूरी-भूरी प्रसंसही बानी ||18||
आगम निगम त्रिलोक आधारा| पिवही भक्ति रस धरे शरीरा ||19||
हरि बिन काहु ना भक्ति गति जानी| करही भक्त हित चरित भवानी ||20||
भक्त वृंद राम अनुरागी| आयहूं गृह सैन बड़भागी ||21||
भजन कीरतन कथा प्रसंगा| करही संत बहु बिधि सत्संगा ||22||
सेवा लागि सैन बिसराई| कोपि नृप निज दूत पढ़ाई ||23||
सयन टूटी हरि मन अकुलाने| डौलत मही शेष घबराने ||24||
चकित चितै रूप भगवाना| विनवही रमा मरन नहीं जाना ||25||
पाय पदोदही तुरत सिधारे| आयहूँ हरि सैन के द्वारे ||26||
प्रथम प्रणाम संत जन कीन्हा| भक्ति भेष तुरत हरि लीन्हा ||27||
अनुपम भक्त भेष मन मोहे| रामानंदी तिलक सिर सोहे ||28||
चापि राछौनी भवन सिधारे| नृप मुसकाय निकट बैठारे ||29||
क्षौर हेतु हस्त सिर धारा| जन्म कोटि अघ पल महूँ जारा ||30||
कुष्ठ झारि तनु कंचन कीन्हा| दिव्य दृष्टि आतम पद दीन्हा ||31||
तेल चमेली कटोरेहु मांही| विष्णु रूप लखा नृप तान्ही ||32||
भृमत मति मन तरकही नाना| महूरविदा देय सनमाना ||33||
सैन आनि कौतुक यह जाने| मनि विहीन जनु फनि अकुलाने ||34||
अश्रु नयन तन सुधिही बिसारी| तलफही जिमी मीन बिनु बारी ||35||
विनय किन्हीं नृप चरन पखारे| राज गुरु सैन पद धारे ||36||
पढ़ही सुनही जे सैन चालीसा| हरही सकल दुःख दोष रमेस ||37||
भाव भक्ति सन जे जन गावहीं| दुर्लभ राम भक्ति पद पावहीं ||38||
दोष दुराय छमियो मम स्वामी| करहु कृपा उर अन्तर जामी ||39||
जनम जनम जग हरि जस गायहुँ | भक्ति प्रकाश नाथ उर आयाहुँ ||40||
सन्त शिरोमणि सैनजी महाराज की जय …
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दीन हीन अति मन्द मति, मरहू कृपा निज जान|
वरर्णो चहति कछु विमल यस महिमा संत सुजान||
चौपाई
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बघेल राज्य रींवा रजधानी| सैन जन्म भूमि सब जानी ||8||
पिता मुकुंद माँ जीवनी देवी| निरत धरम नित साधू सेवी ||9||
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भाव भक्ति प्रेम रस जानो| तिन कहूँ का कही नाथ बखानो ||12||
धन्य-धन्य रामानन्द स्वामी| सब प्रकार गुरु अन्तर जामी ||13||
राम भक्ति ताही बरदानी| किन्हीं कृपा नाथ निज जानी ||14||
राम नाम मन सुमिरन लागा| भई अखण्ड वृति भ्रम भागा ||15||
रामाकार भै अखिल ब्रह्मंडा| भक्ति भवानी भई प्रचण्डा ||16||
जोगी जति तापस ब्रह्मचारी| चकित सबही साधना डारी ||17||
देव महादेव ब्रह्म ज्ञानी| भूरी-भूरी प्रसंसही बानी ||18||
आगम निगम त्रिलोक आधारा| पिवही भक्ति रस धरे शरीरा ||19||
हरि बिन काहु ना भक्ति गति जानी| करही भक्त हित चरित भवानी ||20||
भक्त वृंद राम अनुरागी| आयहूं गृह सैन बड़भागी ||21||
भजन कीरतन कथा प्रसंगा| करही संत बहु बिधि सत्संगा ||22||
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भृमत मति मन तरकही नाना| महूरविदा देय सनमाना ||33||
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