सैनजी का बाल्यकाल

          सैनजी हमारे देश के महानतम संत थे| इतिहास की इस अटूट धारा में मानव की स्मृति में वही स्थायीत्व प्राप्त करते हैं जो उच्चता के श्रेष्ठतम शिखर पर पहुंच चुके हो| साधारण व्यक्तित्व को जनमानस शीघ्र भुला देता है| आज सात सौ वर्ष के पश्चात भी सैन महाराज के प्रति अगाध आस्था इस बात को प्रमाणित करती है कि उनका व्यक्तित्व महान था|

          महान माता-पिता के आल: में ही श्रेष्ठतम व्यक्ति का प्रादुर्भाव होता है| सैनजी के पिता अत्यंत श्रेष्ठ व्यक्तित्व के धनी थे| उस समय बांधवगढ़ के महाराज राजाराम थे| सैनजी के पिता महाराजा राजाराम के सेवक थे, सलाहकार थे तथा राजवैद्य भी थे| सैनजी के पिता का आवागमन राजमहल तक था| महारानियाँ भी उनका सम्मान करती थी| सैन जी की माँ एक विदुषी महिला थी| वह पति के सन्मार्ग पर चलने वाली, प्रभु भक्ति में आस्था रखने वाली श्रेष्ठतम नारी थीं| किसी भी श्रेष्ठ पुरुष का जन्म उत्तम गुणों को धारण करने वाली नारी की कोख से ही होता है| निश्चय ही सैनजी की माता एक महान नारी थी|

          सैनजी के पिता के अनेक वर्षों तक संतान नहीं हुई| इस अभाव के कारण राजा-रानी तथा अनेक संबंधी चिंतित थे| जब सैनजी का जन्म हुआ चारों ओर प्रसन्नता की लहर छा गई| इसके साथ राजा परिवार भी आनंदित हो उठा| जब नामकरण संस्कार हुआ उस समय स्वयं महाराज सैनजी के घर पधारे, बालक को गोद में लिया, उसकी सुंदरता देखकर महाराज आनंद विभोर हो उठे| उन्होंने ही बालक का नाम सैन रखने का प्रस्ताव रखा, क्योंकि सैन का अर्थ गौरवर्ण होता है| सैनजी गौरवर्ण के ही थे| कहते हैं “होनहार विरवान के होत चिकने पात”, श्रेष्ठ वृक्ष के पत्ते सदैव चिकने होते हैं| इसी प्रकार श्रेष्ठ व्यक्ति का व्यक्तित्व बचपन में ही प्रकट होने लगता है| सैनजी में बचपन से ही महान गुण दिखाई देने लगे| इनके शरीर के अंग-उपांग अत्यंत सुंदर थे, गोरा रंग और विशाल ललाट था| जब इनकी मां भजन-कीर्तन में तल्लीन तो यह भी मस्त होकर भजन-कीर्तन में सम्मिलित हो जाते| कुछ बड़े होने पर यह एकांत में भगवान के ध्यान में लीन हो जाते| प्रभात की वेला में इनकी मां मधुर राग में प्रभाती गाती, उसमें यह सम्मिलित हो जाते|

          इनके घर संतों की मंडलियाँ आती रहती| निरंतर भजन-कीर्तन होता रहता| संतों की संगति और मां की रुचि के कारण सुंदर भजन यह बचपन में ही गाने लगे| इनके मधुर कण्ठों से प्रभावित होकर सभी इनके भजन चाव से सुनने लगे| जब से कुछ बड़े हुए तो इन्होंने संगीत मंडली का गठन किया| ये छोटे-छोटे बाल कलाकार अपने सुमधुर कण्ठों से चारों ओर संगीत का वातावरण बनाने लगे| यह भजन मंडली साधारण लोगों के साथ राजमहल को भी प्रभावित करने लगी| राजमहल में भी इन बालकों द्वारा भजन कीर्तन होते रहते| छोटे-छोटे कलाकार सभी का मन मोहित करने लगे| जब सैनजी तरुणाई की ओर बढ़ने लगे तो मधुर वाणी, कोमल स्वभाव, उच्च कोटि की नम्रता तथा संगीत की विशेषज्ञता के कारण लोगों का मन मोहित करने लगे| उस समय संतों की मंडलियाँ काशी से पंढरपुर जाया करती थी| एक रात रामानंदजी की संत मंडली बांधवगढ़ पहुंची| रात्रि को सत्संगति का आयोजन हुआ| संतों के भजनों का प्रवाह चलता रहा| सभी भजनों से आनंद विभोर हो उठे| अंत में बाल मंडली द्वारा बालकों के भजन सुनकर सन्त अत्यंत प्रभावित हुए| रामानंदजी से सैनजी प्रभावित हुए और सैनजी से रामानंदजी| गुरु ने शिष्य को पहचाना तथा शिष्य ने गुरु को| सैनजी रामानंदजी के चरणों में गिर पड़े तथा दीक्षा देने की याचना की| रामानंदजी ने सैन को उठाया छाती को लगाया तथा दीक्षा प्रदान की

साभार प्रस्तुति – रामधन रेणीवाल, कोलिया
सैन दिशा कल्प ( द्विमासिक) अंक-35, मई-जून 2009, प्रारंभ वर्ष-1987, पृष्ठ -3