तपोबल से आच्छादित रहे सन्त शिरोमणी सैन जी महाराज

          जगद्गुरू स्वामी रामानन्दाचार्यजी महाराज के द्वादश शिष्यों में मेधावी शिष्य सन्त शिरोमणी सैन जी महाराज का आभामण्डल विराटता के साथ तपोबल से आच्छादित रहा। धर्म परायण माता-पिता से नैसर्गिक रूप में अर्जित संस्कारों से बालक रामसेन अपने बालपन से ही संकेत देने लगा कि यह बालक आगे चलकर देश-धर्म के लिये कुछ अलग ही लीला रचने वाला है। सन्त सेन भगत ने अपने लौकिक जीवन में गृहस्थी पालन हेतु अपने पैतृक पेशा क्षौरकर्म को धारित करते हुये भगवत इच्छा को ही सर्वोपरी भाव में रखा। आपनी बस्ती एवं घर-पड़ोस में आने वाले सन्त-महात्माओं, योगी सन्यासियों के दर्शनार्थ उत्कण्ठापूर्वक चरण-स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करना तथा उनकी सेवा में तल्लीनता से लग जाना सेन भगत का स्वभाव ही रचित हो गया। चूंकि सेन भगत के पिताश्री बाँधवगढ़ राजपरिवार से जुड़े राजनाई के रूप में प्रतिष्ठित रहे, अतः बालक सेन भगत का राजपरिवार में आना-जाना सहन ही रहता था। राजपरिवार के विभिन्न सेवादार सेन भगत को ऐसा निहारा करते थे, जैसे सेन भगत की पैदाईस कोई ईश्वरीय रचना हो। सेनजी महाराज अपने बचपन से हष्ट-पुष्ट एवं शरीर सौष्ठव के धनी रहे, लेकिन आम बच्चों की तरह चुलबुलाट उनके व्यक्तित्व में नहीं थी, अपितु उनकी धीर-गम्भीरता का मुख-मण्डल आम बच्चों से उनको अलग ही करता था। समय के साथ युवावस्था के दौर में सेन भगत का व्यक्तित्व एवं गुणों की गाथा विस्तारित होने लगी तथा उनकी धर्मनिष्ठा, चारित्रिक जीवनशैली, ईश्वरीय आस्था, सत्संग-कीर्तन, सेवा समर्पण तथा तप साधना की आभा ने सम्पूर्ण समाज में पहचान बनायी तथा सन्त सेन भगत की प्रतिष्ठा एवं श्रेष्ठ गृहस्थ सन्त के रूप में सन्त जगत में भी स्थापित हो गयी। रोजमर्रा अब तो सन्तो की टोलियों का सेन भगत के घर पर आवास-प्रवास एक तरह से दिनचर्या सी बन गयी। सेन भगत का सपरिवार सन्तों की सेवा में समर्पित रहना स्वाभाविक जीवनशैली सी हो गयी। सत्संग-कीर्तन की झमाझम रोज सेन भगत के घर होने लगी। दूर-दूर से सत्संगियों का मेला सा लगने लगा। ईश्वरीय घटना ऐसी घटित हुयी कि सेन भगत का सत्संग एवं सन्त सेवा में तल्लीन रहना तथा राज परिवार की सेवा विस्मृत होने के क्षणों में स्वयं भगवान नारायण द्वारा नर रूप सेन भगत का रूप धारित कर राज सेवा में भगवान का अवतरित होना ऐसा विलक्षण पल रहा कि बाँधवगढ़ का राजन परिवार सन्त सेन भगत की ईश्वरीय भक्ति का कृपा पात्र बन गया तथा सेन भगत को राजगुरू के पद पर राज परिवार द्वारा अंगीकार कर परमात्मा की भक्ति का चमत्कार बाँधवगढ़ राज परिवार में अनन्त काल के लिये स्वर्णान्कित कर दिया। असंख्य धर्म शास्त्रों एवं इतिहास पृष्ठों में ऐसी भगती पर हुयी भगवत कृपा का उदाहरण मानव समाज में विरला ही दृष्टिगत होता है। ऐसी भगवत कृपा के ही कारण सन्तों में शिरोमणी सेन जी महाराज शोभायमान हैं तथा सन्त साहित्य जगत में अति श्रद्धा के साथ सन्त शिरोमणी सेन जी महाराज का स्मरण हम सबके लिए गौरव का विषय है।

          अपनी गुरुपीठ अखिल भारतीय सैन भक्तिपीठ वर्तमान दौर में आध्यकुलगुरू सन्त शिरोमणी सेन जी महाराज की गादी है तथा सेन समाज सहित सर्वसमान के लिए श्रध्दा का स्थल है। सेन जी महाराज के व्यक्तित्व से जुड़ी गुण-गाथाओं का बखान, प्रचार एवं प्रस्तुति का राष्ट्र स्तर पर मुख्य केन्द्र अपनी गुरूपीठ ही है। सेन जी महाराज को प्रमुख शिक्षाओं का मूल सारांश केवल एक ही है कि मनुष्य का चेतन-अचेतन की सभी अवस्थाओं में अपने कर्तव्य पालन के साथ-साथ भगवत् नाम स्मरण को अनवरत जारी रखें तथा जीवन को सहज-सदभाव से रखें, इसमें किसी भी तरह का प्रचपंच एवं पाखण्ड को जगह नहीं देवें। सेन जी महाराज बताते हैं कि अपने जीवन को अति पवित्रता के साथ जीयें। समस्त प्रकार के व्यसनों से अपने को मुक्त रखें। नारी शक्ति के प्रति सदैव सम्मान-आदर का भाव रखना हम सबका दायित्व है। सन्त शिरोमणी सेनजी महाराज के तप-साधन स्थल, इनके द्वारा रचित साहित्य, उपदेश, धर्म दृष्टि तथा शिक्षायें सर्व समाज के लिये स्मरणीय हैं। हर वर्ष वैशाख कृष्ण पक्ष द्वादशी को सम्पूर्ण भारत में जन्म स्मरण दिवस मनाया जाता है। भारत राष्ट्र की सन्त परम्परा में सन्त शिरोमणी सेन जी महाराज का स्थान अनूठा एवं विशिष्ट है तथा हम सबको गौरवान्वित करने वाला है।

साभार प्रस्तुति – वैद्य केशरमल परिहार, सांगलिया

सैन दृष्टि (द्विमासिक)

अंक 2-3, वर्ष-1, सितम्बर-दिसम्बर 2016, पृष्ठ 13