लोकहित को समर्पित अलौकिक विभूति सैनाचार्य श्री श्री 1008 श्री अचलानन्दगिरीजी महाराज

          लोक-कल्याण को समर्पित सन्त-महात्माओं के व्यक्तित्व को केवल शब्द श्रृंखलाओं में बांधा नहीं जा सकता अपितु श्रद्धालु की श्रद्धा ही एक ऐसा अव्यक्त भाव होता है, जिसमें इन महापुरुषों का व्यक्तित्व अभिव्यक्त होता है| श्रद्धेय मनिषियों का अपना जड़त्व विशिष्ट संप्रदाय, पंथ, जाति अथवा धर्म नहीं होता है, बल्कि मानव मात्र का कल्याण ही इनका परम ध्येय होता है| गृहस्थ लोकाचार से सन्यस्थ व्यक्ति का सन्यासी के रूप में एक तरह से पुनर्जन्म होता है| ऐसे समस्त व्यक्तित्व का चिंतन केवल लोकहित ही होता है| इसी परिपेक्ष्य में परम दयालु बाबा रामदेव जी के कृपा पात्र एवं अखिल भारतीय सैन भक्तिपीठ के पीठाधीश्वर सैनाचार्य श्री श्री 1008 श्री स्वामी अचलानन्दगिरीजी महाराज इस भारत भू-धरा पर लोकहित को समर्पित एक अलौकिक विभूति है| आचार्य श्री का जन्म दिनांक 10 अप्रैल, 1955 को राजस्थान राज्य के जिला जोधपुर में स्थित ओसिया तहसील के ग्राम खिन्दाकौर में हुआ| आपके पिताजी का नाम राजूरामजी एवं मातुश्री का नाम कसुंबी देवी है| सैन कुल का यह धर्मपरायण दंपति निश्चय ही ईशकृपा का पात्र रहा जहां बालक ‘अचल’ का जन्म हुआ| परमेश्वर की अनुकंपा एवं देवयोग से बालक ‘अचल’ में आध्यात्मिक भाव एवं धार्मिक तप-साधना की प्रेरणा अल्पायु में ही जागृत हो गयी| मात्र 17 वर्ष की आयु में ही संयोग से जूना अखाड़ा काशी के श्री श्री 1008 श्री रामानन्दजी महाराज तथा जोशीमठ के दसनाम सन्यासी आश्रम के आचार्यजी से संपर्क हुआ| इन्हीं के गुरुचरणों में बैठकर आपने प्रथमत: गुरुदीक्षा ली| बालक ‘अचल’ अपने नाम के अनुरूप संकल्प के साथ सन्यस्थ व्यक्तित्व में परिवर्तित हो गया| लेकिन कार्य में निवृत्ति सन्यास नहीं अपितु कर्मयुक्त सन्यास की अवधारणा को धारित कर सन्यासी अचलानन्दगिरीजी ने लोकहित को ध्येय बनाया|
          कुछ समय उपरान्त आप जोधपुर पधारे तथा जहां आप पर आराध्य बाबा रामदेवजी महाराज एवं नेतलदेरानी की युगल जोड़ी की कृपा हुई तथा आप भावविभोर, मन-समर्पण से तल्लीन होकर तप-साधना में लग गये| हवन-यज्ञ, धूप-ध्यान, भजन-कीर्तन, प्रार्थना-उपासना तथा पूजा-अर्चना आदि नियमित एवं निश्चल भाव से करते रहना आपकी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा बन गया| बाबा रामदेवजी महाराज नेतलदे रानी की युगल जोड़ी का आपको साक्षात दर्शन हुये तथा स्वामी अचलानन्दगिरीजी ने अपने अंतर्मन प्रेरणा से जोधपुर स्थित राईकाबाग पैलेस के निकट अपने आराध्य बाबा रामदेव नेतलदेरानी की युगल जोड़ी का भव्य देवालय निर्मित करवाया| आज यह पूजा स्थल जोधपुर नगर के प्रसिद्ध एवं पावन स्थलों में से एक जन श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है| इसमें दर्शनार्थ युगल जोड़ी बाबा रामदेव-नेतलदे रानी की विराजमान है| यहां वर्ष पर्यन्त धार्मिक अनुष्ठानों के आयोजन होते रहते हैं|
          लौकिक कष्ट निवारणार्थ देश के विभिन्न भागों राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उड़ीसा, बिहार, बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक तथा आसाम आदि से श्रद्धालुगण यहां स्वामी अचलानन्दगिरीजी के शरणागत होते हैं| आराध्य बाबा रामदेव जी महाराज की कृपा से स्वामी जी के वचनामृत एवं चरणामृत मात्र ग्रहण करने से श्रद्धालुगण अपने कष्ट में राहत महसूस करते हैं| जन कल्याणार्थ आप मुक्त हस्त से अर्थ सहयोग करना आपकी सहज वृत्ति है| जगह-जगह अन्नक्षेत्र, धर्मशालाएं, देवालय, विद्यालय है, पेयजल-कुटीर, चिकित्सालय स्थापन, धार्मिक अनुष्ठान करना आदि आपके सतत सेवा प्रकल्प हैं|
          स्वामी अचलानन्दगिरीजी के समस्त जीवन में लोकहित का गुरुत्तर दायित्व गत दशक में अनायास ही इस रूप में आया कि आपको आध्य सन्त शिरोमणि सैन जी महाराज की अखिल भारतीय सैन भक्तिपीठ की स्थापना के साथ ही प्रथम आचार्य के रूप में पीठाधीश्वर के पद पर महाकालेश्वर की नगरी उज्सैन में सिंहस्थ महाकुम्भ, 1992 के दौरान दिनांक 15 अप्रैल, 1992 को प्रातः 9 बजे रामानन्द संप्रदाय के वर्तमान पीठाधीश्वर अनंत विभूषित श्री जगदगुरू रामानन्दाचार्य श्री श्री 1008 श्री रमेशरामनरेशाचार्यजी महाराज, श्रीमठ पंचगंगा का घाट, काशी के कर-कमलों से धार्मिक विधि-विधान तथा मंत्रोचार के साथ अभिषित्त किया गया| उल्लेखनीय है कि आध्यगुरु स्वामी रामानन्दाचार्य के द्वादश शिष्यों में श्री सैनजी महाराज एक प्रमुख शिष्य रहे| कई दशकों के सतत प्रयासों एवं सैन समाज के जागरूक कार्यकर्ताओं एवं श्रद्धालुओं की आस्था के परिणामस्वरुप अखिल भारतीय भक्तिपीठ को मूर्त रूप मिला| इस प्रकार सैन भक्तिपीठ के प्रथम आचार्य के रूप में आपका वर्तमान संबोधन सैनाचार्य श्री श्री 1008 स्वामी अचलानन्दगिरी महाराज, पीठाधीश्वर अखिल भारतीय सैन भक्तिपीठ है| सैन भक्तिपीठ एक ट्रस्ट के रूप में दिनांक 29 अप्रैल 1995 से पंजीकृत है| जिसका पंजीकृत कार्यालय बाबा रामदेव मंदिर, राईका बाग, जोधपुर में स्थित है| सैन भक्तिपीठ का मुख्यालय आचार्य श्री के आशीर्वाद एवं सदप्रयासों से तीर्थराज पुष्कर (राजस्थान) में विद्यमान है| देशभर में फैले सैनजी महाराज के हजारों देवालय इस सैन भक्तिपीठ की अभिन्न शाखाओं के रूप में सम्बध्द है| इस प्रकार पीठाधीश्वर के रूप में सैनाचार्य श्री अचलानन्दगिरीजी महाराज का राष्ट्रीय स्तर पर लोकहित का चुनौतियों से भरा यात्रा मार्ग है| सैन भक्तिपीठ के मंच से सैनाचार्य श्री के सानिध्य में लोककल्याण के अनेकानेक सेवा प्रकल्प एवं कार्यक्रम अपनी पूर्ण ऊर्जा एवं संकल्प के साथ संचालित है| समाज में व्याप्त विषमताओं के प्रति सैनाचार्य श्री पूर्णतया सजग है तथा सदैव विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक आयोजनों के माध्यम से समाज को संदेशित करते रहते हैं कि शुद्ध आचार-व्यवहार, शिक्षा प्रसार, जन जागृति तथा पारस्परिक समरसता बनाकर स्वयं को सशक्त बनाओ| सैनाचार्यजी की यह दृढ़ मान्यता है कि नैतिक विकास प्रथम आवश्यकता है| सैनजी महाराज की 700 वीं जयंती वैशाख कृष्ण पक्ष द्वादशी, विक्रम संवत 2057 से पीठाधीश्वर ने पूरे देश में सैन भक्तिपीठ के माध्यम से नशामुक्त समाज की संकल्पना एक क्रांतिकारी अभियान के रूप में सूत्रपात्र कर रखी है| आचार्य श्री का आव्हान है कि समस्त व्यसन मेरी झोली में अर्पित कर दो, यह मेरी गुरु दक्षिणा होगी| देश भर में प्रिंट मीडिया मीडिया, दृश्य-श्रव्य मीडिया तथा आपने प्रत्यक्ष आशीर्वचनों में नशामुक्ति विषय को आचार्य श्री सर्वोच्च प्राथमिकता से प्रचारित करने को प्रधानता दे रहे हैं|
          हर महाकुम्भ पर्व के पावन अवसर पर ‘सैनाचार्य आश्रम’ के नाम से अन्न क्षेत्र सन्त सेवा शिविर का भव्य आयोजन आचार्य श्री के सानिध्य में होते रहे हैं| हर वर्ष कार्तिक शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक पुष्कर स्थित सैन भक्तिपीठ मुख्यालय पर भव्य धार्मिक आयोजन आचार्य श्री द्वारा आयोजित होते हैं| विक्रम संवत 2058 के दौरान जोधपुर से रामदेवरा तक नशामुक्ति संदेश के रूप में आचार्य श्री के नेतृत्व में विशाल पदयात्रा संपन्न हुई| साहित्यिक दृष्टि से आचार्यजी के संरक्षण में एक शाम एक सामयिक पत्रिका सैन भक्तिपीठ संदेश का भक्तिपीठ ट्रस्ट द्वारा प्रकाशन किया जाता है| आध्य सन्त शिरोमणि सैनजी महाराज के जीवन चरित्र पर पुस्तकें प्रकाशित की गयी हैं| सैन भक्तिपीठ के माध्यम से समाज के आवश्यकतामन्द विद्यार्थियों को कंप्यूटर, पुस्तकें तथा आर्थिक सहयोग देना एक नियमित कार्य है| सैनाचार्य जी की जन्म-स्थली ग्राम खिन्दाकौर के बाबा रामदेव मंदिर में हर वर्ष चैत्र मास में अखंड कीर्तन सप्ताह आयोजित किए जाते हैं| भक्तिपीठ स्थापना की प्रथम दशाब्दी अवसर पर संपन्न कार्यक्रमों-आयोजनों के संदर्भ में एक सारगर्भित स्मारिका का प्रकाशन विक्रम संवत 2058 में किया गया था| देश के कोने-कोने से सैन भक्तिपीठ के समर्पित हजारों कार्यकर्ता-श्रद्धालुगण भक्तिपीठ के ध्येयनिष्ठ मार्ग पर आचार्य श्री के मार्गदर्शन में सेवारत हैं| वर्षभर धार्मिक, आध्यात्मिक-सामाजिक तथा राष्ट्रीय कार्यक्रमों में सैनाचार्यश्री का बाह्य आवास-प्रवास इनकी सघन दिनचर्या का भाग है|
          दिनांक 27-28 अप्रैल, 2002 को भवानीमंडी (झालावाड) राजस्थान में अखिल भारतीय सैन भक्तिपीठ के तत्वावधान में विशाल राष्ट्रीय अधिवेशन सैनाचार्यश्री के सानिध्य एवं संरक्षण में सामाजिक, आध्यात्मिक जागृति के संदेश ध्येय पर आधारित समारोह संपन्न हुआ| इस अवसर पर स्वामी श्री रामनरेशाचार्यजी महाराज का अप्रत्यक्ष आशीर्वाद मिला| देश के विभिन्न राज्यों से हजारों व्यक्तियों ने इस आयोजन में प्रतिनिधित्व किया| इस पावन अवसर पर भी सैनाचार्य श्री का मुख्य आह्वान यह रहा कि संकल्पित मनभाव से संस्कारमय व्यक्ति एवं समाज का निर्माण कर इस भारत राष्ट्र को विश्व धरातल पर एक गौरवमय स्थान प्रदान करने हेतु समर्पित हों|
          सैनाचार्यजी का यह स्पष्ट दर्शन है कि जीवन को सहज, सरल एवं साफ-सुथरा रखो| कर्मकांडी एवं ढोंगी जीवन से परहेज करो| सदैव जागरूक रहकर अपना उन्नति का मार्ग प्रशस्त करो| अपने आचरण को पवित्र बनाओ तथा चिंतन को लोकहित से जोड़ो| सर्व कल्याण की कामना करो| प्रारब्ध के साथ-साथ अपने पुरुषार्थ पर भी पूर्ण भरोसा रखो| परमपिता परमात्मा के प्रति अपनी गहरी आस्था के साथ अपने चित्तवृत्तियों को सात्विक बनाओ| जीवन मात्र के प्रति अपनापन दर्शाकर मानव धर्म का पालन करो|
          यथार्थता का यह है कि गुरु से आज्ञा तथा इनकी कृपा प्राप्ति का मार्ग श्रद्धाभाव ही है| सैनाचार्यजी सदैव कर्म प्रधान जीवन को ही प्रधानता देते हैं| सौम्य, सरल, विन्रम तथा स्नेह भाव से पोषित व्यक्तित्व के धनी सैन भक्तिपीठ के पीठाधीश्वर को शत शत नमन| ऐसे तप साधक सन्त का आध्यकुलगुरु सन्त शिरोमणि सैन जी महाराज की पीठ अखिल भारतीय सैन भक्तिपीठ के ट्रस्ट जोधपुर के प्रथम पीठाधीश्वर के रूप में अभिषित होकर प्रतिष्ठित होने से संपूर्ण समाज गौरवान्वित है|
          बहुमुखी प्रतिभा संपन्न विभूति श्री सैनाचार्यजी के संरक्षण में अखिल भारतीय सैन भक्तिपीठ अपने कार्य क्षेत्र में नये आयाम स्थापित करेगी, इसी श्रद्धा एवं विश्वास के साथ आचार्यश्री के चरणों में प्रणाम| ऐसे महान सन्यस्थ व्यक्तित्व जो लोकहित को समर्पित है, हम सब सभी के लिए श्रद्धामय है|

आभार प्रस्तुति – स्मारिका 2007
(सत्संग सभागार लोक लोकार्पण समारोह)
संपादक – प्रो मोहन लाल सैन, पृष्ठ 3-6